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वन मंडल अधिकारी कवर्धा की जवाबदेही पर सवाल,वन परिक्षेत्र पश्चिम में अवैध रेत भंडारण, कमिशन की बू

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वन मंडल अधिकारी कवर्धा की जवाबदेही पर सवाल,वन परिक्षेत्र पश्चिम में अवैध रेत भंडारण, कमिशन की बू

 वन मंडल अधिकारी कवर्धा की जवाबदेही पर सवाल,वन परिक्षेत्र पश्चिम में अवैध रेत भंडारण, कमिशन की बू 



कवर्धा।कबीरधाम जिले में अवैध रेत उत्खनन और भंडारण के मामलों पर प्रभावी नियंत्रण के दावों के बीच वन मंडल कवर्धा अंतर्गत वन परिक्षेत्र पश्चिम बीट क्षेत्र के ग्राम छिन्दीडीह में शासकीय भूमि पर अवैध रेत भंडारण का गंभीर मामला सामने आया है। इस प्रकरण ने अब वन मंडल अधिकारी कवर्धा और कबीरधाम कलेक्टर की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।


स्थानीय सूत्रों के अनुसार ग्राम छिन्दीडीह में शासकीय भूमि पर सरपंच एवं सचिव की जानकारी में अवैध रूप से रेत का भंडारण किया जा रहा है। आरोप है कि शासकीय नदी क्षेत्र, जो वन सीमा के अंतर्गत आता है, वहां से रेत की चोरी कर उसे गौठान परिसर में संग्रहित किया जा रहा है। यह कृत्य स्पष्ट रूप से वन कानून, खनिज नियमों और पंचायत व्यवस्था के नियमों का उल्लंघन है।


इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि अवैध रेत कारोबार केवल रेत माफियाओं तक सीमित नहीं दिख रहा, बल्कि इसमें जवाबदेह पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि और शासकीय सेवकों की संलिप्तता के आरोप भी सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या वन विभाग की यह लापरवाही है या मिलीभगत?


अब निगाहें सीधे तौर पर वन मंडल अधिकारी, कवर्धा पर टिकी हैं, जिनके अधीन यह पूरा क्षेत्र आता है। सवाल उठ रहा है कि वन सीमा क्षेत्र से रेत चोरी और शासकीय भूमि पर भंडारण की जानकारी विभाग को कैसे नहीं हुई, या फिर जानकारी होने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं की गई।


साथ ही, कबीरधाम कलेक्टर की भूमिका भी इस प्रकरण में अहम मानी जा रही है। क्या जिला प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष जांच कराएगा? क्या अवैध रेत भंडारण और चोरी में संलिप्त पाए जाने पर संबंधित सरपंच, सचिव, वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों सहित अन्य दोषियों के विरुद्ध कड़ी प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी?


जनता यह जानना चाहती है कि क्या जिला प्रशासन कबीरधाम इस तरह के कृत्यों पर सख्त रुख अपनाकर प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करेगा, या फिर अवैध रेत कारोबार यूं ही प्रशासनिक संरक्षण में फलता-फूलता रहेगा।


फिलहाल, यह मामला शासन-प्रशासन की जवाबदेही, पारदर्शिता और कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की एक बड़ी परीक्षा बनकर सामने आया है।

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